हम खुद के क्यू नहीं?
खामोशी कितनी अंदर तक हैं । शायद इसका कोई पैमाना नहीं हैं ।
खुद को ही खोजने की तलाश हमे खुद को कितना अकेला करती हैं ।
खुद को खोजना एक कला हैं । एक बेपरवाही मांगती हैं ये ।
यूं ही कहा खोज पते हैं हम खुद को ।
हम खूब सारी चीज़े, सपने , रास्ते , खोज लेते हैं ।
खुद की खोज में निकल के फिर वापिस वही आ पाना,
जैसे गए थे ।
आखिर ये कितना मुश्किल होता हैं ?
आखिर कितना मुश्किल होता हैं खुद का होना ?
खुद के ताने बाने में खुद को उलझा के खुद को खुद से दूर करना,
आखिर कितना सही है ये ?
फुरसत में किए गए सारे वादे
जो खुद के लिए खुद से किए हो।
उनको जाने क्यू देते हैं ?
ऐसा करना क्या फुरसत के उन पलों का अपमान नहीं हैं ?
खुद के साथ अपमान नहीं ?
खुद की खुशियों का रास्ता मोड़ना क्या गलत नहीं ?
खुद को दूसरा समझना गलत नहीं ?
अगर हाँ, गलत हैं ।
तो हम खुद के क्यू नहीं ?
हम क्यू खुद से रूठे हैं ?
सन्नाटे के शोर मैं खुद को क्यू बहा दिया ?
खुद हम खुद के क्यू नहीं हैं ???।।
सतीश कुमार ।।
Comments
Post a Comment